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#रुद्रपुर में सक्रिय हुए #किताबें और #ड्रेस #माफिया। (माफिया और माफिया के सहयोगियों का जल्द होगा खुलासा )

 रुद्रपुर - #उत्तराखंड #शिक्षा #विभाग के अंतर्गत आने वाले अशासकीय #स्कूलों में #प्राइवेट #किताबें और ड्रेस को लेकर बड़ा खेल पूरे प्रदेश भर में होता है । वही हम बात करें तो उधम सिंह नगर जिले के मुख्यालय रुद्रपुर की तो यहां पर सैकड़ो स्कूल बिना मान्यता के मानकों को ताक पर रखकर संचालित हो रहे है। जहां पर रुद्रपुर शहर के कुछ व्यापारी प्राइवेट किताबें और ड्रेस का कारोबार करोड़ों रुपए में करते हैं। शहर की मीडिया ने लगातार इन खबरों को छाप कर प्रशासन को जगाने का काम किया है , लेकिन शिक्षा विभाग के इन माफियों  से गहरी सांठ गांठ चलते यह किताबें और ड्रेस के काले कारोबार में ये माफिया लगातार सक्रिय हैं।  

अभी सत्र शुरू होने में कई महीने हैं, लेकिन इन्होंने अभी से अपना जाल बिछाना शुरू कर दिया है। अभी से स्कूलों की बुकिंग शुरू हो गई है ,कौन सी किताबें कौन सी ड्रेस किस स्कूल में अगले साल बच्चे पहन कर आएंगे ,यह अभी से तय किया जा रहा है। रुद्रपुर शहर का एक जाना माना व्यापारी जो शहर की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था से भी ताल्लुक रखता है । वह कहता है मेरा रसूख और मेरी पहुंच बहुत ऊपर तक है।  मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता शहर के सभी लोग मेरी मुट्ठी में हैं, मैं जैसे मर्जी चाहे वैसे व्यापार करूंगा । तो धर्म की आड़ में आम जनता को लूटने का काम किताबें और ड्रेस के व्यापार से यह माफिया कर रहा है अभी से लाखों रुपए एडवांस देकर स्कूल संचालकों से बुकिंग कर रहा है और यह करार हो रहा है कि अगले साल किताबें या फिर ड्रेस इसी माफिया से खरीदी जाएंगी।

 ऐसे में यह माफिया अच्छा विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों की भी जेब गर्म करता है और आम जनता की गाड़ी मेहनत की कमाई से करोड़ों रुपए अनैतिक तरीके से कमाता है जिसमें स्कूल संचालक भी इसका भरपूर साथ देते हैं 

ऐसे में शिक्षा विभाग के अधिकारी गंभीर दिखाई नहीं देते हैं हालांकि पिछली सरकार में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने जरूर लगाम लगाई थी लेकिन उसके बाद मामला ठंडे में है और सस्ती शिक्षा एवं शिक्षा का अधिकार सिर्फ ढकोसला बनकर रह गया है। जहां एक तरफ सरकार का यह अभियान है कि कोई भी अशिक्षित नहा रहे वही उत्तराखंड में शिक्षा विभाग की हालत बाद से बदतर है खासकर हम बात करें उधम सिंह नगर जिले के रुद्रपुर की मलिन बस्तियों की जहां पर हर गली नुक्कड़ चौराहे पर 10 बाय 10 के कमरों में स्कूल खुले हुए हैं।

 आयोग्य   शिक्षक इन स्कूलों को संचालित कर रहे हैं और यह शिक्षक यही नहीं रंगरलिया मनाते हुए भी पकड़े जाते हैं इसके बावजूद भी शिक्षा विभाग गंभीर नहीं दिखाई देता है अगर यही हालात रहे तो समाज किस तरफ जाएगा इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल होगा और इसका खामियाजा हर किसी को भोगना पड़ेगा। क्योंकि आपको बता दें ,कि बिना मानकों को पूरा किए बिना मान्यता के इंटर की कक्षाएं संचालित की जा रही है।ऐसे शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे हैं जो खुद 10वीं या 12वीं ही पास है। खुद हिंदी लिखना सही से नहीं आती है ऐसे शिक्षक दसवीं और बारहवीं के बच्चों का भविष्य संभाल रहे ऐसे में एक बड़ा सवाल है,आखिर प्रशासन गंभीरता क्यों नहीं दिखता है ? समाज किस तरफ जा रहा है ?

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