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#रुद्रपुर में सक्रिय हुए #किताबें और #ड्रेस #माफिया । पार्ट - 2 किताबों की माफिया गिरी करने के लिए माफिया एडवांस पैसे देकर खुलवा रहा नए स्कूल।

 रुद्रपुर - रुद्रपुर #शिक्षा के साथ किताबें और ड्रेस की माफिया गिरी रुद्रपुर शहर में बड़े पैमाने पर होती है शिक्षा के लिए आधुनिक युग में किताबें और ड्रेस अहम भूमिका निभाती हैं । जानकारी के अनुसार आपको बता दें लगभग 100 करोड रुपए से ज्यादा का व्यापार किताबों और ड्रेस का रुद्रपुर शहर में होता है।  जिस पर दो-चार व्यापारियों का कब्जा है जो मोटे मुनाफे पर इस व्यापार को अंजाम देते हैं और स्कूल संचालकों से सेटिंग-गेटिंग करके मनमाने रेट की किताबें लगते हैं। जिसकी मार सीधे-सीधे भोली भाली जनता पर पड़ती है।

 #सिडकुल में जुड़े मजदूर और निम्न वर्ग के लोग अपने बच्चों को इन्हीं स्कूलों में पढ़ते हैं जो गली कूचे में 10 * 10 के कमरे में चलते हैं , इन स्कूलों में पढ़ाना उनकी मजबूरी है क्योंकि 


#लाखों की आबादी वाले शहर में मात्र दर्जन भर ही सरकारी स्कूल है । जिम सीमित ही बच्चों को पढ़ाया जाता है और जो पिछड़े हुए निम्न वर्ग के बच्चे हैं उनके एडमिशन भी नहीं होते हैं होते भी हैं तो उनमें बड़ी अड़चनें आती है और फॉर्मेलिटी भी  करनी होती है क्योंकि यह निम्न और 

#मजदूर वर्ग के लोग ज्यादातर बाहरी प्रदेशों से संपर्क रखते हैं। जनसंख्या अधिक होने के कारण सरकारी स्कूल पर्याप्त नहीं है अतः लोगों को इन अवैध तरीके से चल रहे जो कि मानकों  को तक पर रखकर शिक्षा देने की हामी भरते हैं ।  यह स्कूल ऐसे प्रचार करते हैं जैसे यह बड़ी उच्च कोटि की शिक्षा दे रहे हैं । 

लेकिन उनकी व्यवस्था कितनी खोखली है इसका खुलासा हम लग सकते। इससे जुड़ी व्यवस्था के तमाम खुलासे  हम आपको बताएंगे उससे पहले अब मार्च - अप्रैल से नए सत्र का शुभारंभ होगा। तो अब इन किताब और ड्रेस के माफियाओं ने एडवांस में पैसे देकर स्कूल खुलवाने शुरू कर दिए हैं ,जो इन्हीं के गुर्गे होते हैं यह गुर्गे स्कूल किराए की बिल्डिंग लेकर खोलते हैं और इन्हीं लोगों से किताबें और ड्रेस खरीदने के लिए अभिभावकों को मजबूर करते हैं और इससे गरीब जनता की मेहनत की गाड़ी कमाई की लूट करते हैं। जिन स्कूलों के ना तो कोई मानक होते हैं और ना ही कोई आधार ना ही कुशल शिक्षक होते हैं और ना ही कोई शिक्षा का वातावरण सिर्फ और सिर्फ शिक्षाको बाजारू बनाकर अपनी दुकान खोल देते हैं। और यह शिक्षा का बाजारीकरण अगर नहीं रुक तो उसके दुष्परिणाम क्या होने वाले हैं यह सबके सामने होंगे।

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